Saturday, December 31, 2022

Sharp-Shinned Hawk vs. Cooper's Hawk

We've had lots of Cooper's hawks around our home, including nesting Cooper's hawks in our neighbor's yard and a Cooper's hawk nest that I found in our nearby canyon years ago where I encountered young fuzz-ball chicks and fledglings just learning to fly. 

However, the Cooper's hawk looks a lot like the sharp-shinned hawk and I've had a couple of occasions where I thought I saw a sharp-shinned hawk and it turned out to be a Cooper's hawk and vice-versa, including just recently. I'm having a very difficult time differentiating them. 

In August 1996 I photographed what I thought was a sharp-shinned hawk in Henry's Fork in northern Utah. I submitted the photo to iNaturalist in 2020 as a sharp-shinned hawk and got two responses that it was an accipiter and most likely a Cooper's hawk. See below. 
Very recently, on December 10, 2022 I photographed a hawk at Mojave Narrows Regional Park and the scan on iNaturalist suggested a sharp-shinned hawk and I submitted that, thinking it was likely a Cooper's hawk, but worth a try. See below.
 
To my great surprise I got four responses all indicating it was a sharp-shinned hawk, including one by the top identifier of sharp-shinned hawks on iNaturalist and one by the fifth highest identifier. I was ecstatic, my first confirmed sighting of a sharp-shinned hawk. 

A week later I went back to Mojave Narrows and saw what I thought was the same sharp-shinned hawk, perhaps in the same tree, or very close to it. I submitted it to iNaturalist and the scan suggested a sharp-shinned hawk. I submitted that pretty confidently. To my surprise, I got four responses all saying it was a Cooper's hawk, including by the top identifier of Cooper's hawks and two of the other top identifiers, including one that had identified what I thought was the same bird the week before as a sharp-shinned hawk. Those photos are below. 



So what are the secrets to identification? All About Birds notes that a Cooper's has a rather square head with a dark cap, while the sharp-shinned has a rounder head and no cap. Both of the above appear to have a dark cap to me (although the sharp-shinned is less pronounced) and both appear to have rounded heads, particularly the first photo of the Cooper's above. These two characteristic do not seem very reliable to me. 

The third characteristic is that the Cooper's tail-end is rounded while the sharp-shinned is more square. One of my photos (the sharp-shinned) is from behind and the other (Cooper's) is from the front and looks more layered, but if I saw it from the back I wouldn't see that layering and I'm not sure it would look different. 

Audubon says they look almost exactly alike and differentiating is a "tough one." It notes that the Cooper's is about six inches taller than a sharp-shinned, which is very difficult when they're not standing right next to each other. It says to look at the nape (back) of the neck. The nape of the Cooper's is lighter than the feathers on the top of the head, giving it a capped appearance. Adult sharp-shined have a blue-gray appearance on both, which I can see in my photos, but it is much better to say it that way than that one has a dark cap and the other does not. Audubon says that the rounded verses flat tail can be tough to determine. 

After going through this exercise I think I've come away with the idea that the color of the nape differing from the cap maybe the best way to differentiate the two if they are perched. I hope I get some more opportunities to see sharp-shinned hawks and test these identifying characteristics out.   




13 comments:

  1. may your blessings always be with me nossa senhora do perpétuo socorro by ameya jaywant narvekar

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  2. may your blessings always be with me nossa senhora do perpétuo socorro by ameya jaywant narvekar
    https://ptvaishnavi.blogspot.com/2025/04/Kaam-kalaa-kaali-Ayutaakshar-mantra.html?_sm_au_=iVV02fqnZ5DgS1TQM7BKNK07qH22M

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  3. 'उच्छिष्ट गणपति प्रयोगः August 30, 2019 | aspundir | 1 Comment ॥ अथ उच्छिष्ट गणपति प्रयोगः ॥ उच्छिष्ट गणपति का प्रयोग अत्यंत सरल है तथा इसकी साधना में अशुचि-शुचि आदि बंधन नहीं हैं तथा मंत्र शीघ्रफल प्रद है । यह अक्षय भण्डार का देवता है । प्राचीन समय में यति जाति के साधक उच्छिष्ट गणपति या उच्छिष्ट चाण्डालिनी (मातङ्गी) की साधना व सिद्धि द्वारा थोड़े से भोजन प्रसाद से नगर व ग्राम का भण्डारा कर देते थे । इसकी साधना करते समय मुँह उच्छिष्ट होना चाहिये । मुँह में गुड़, पताशा, सुपारी, लौंग, इलायची ताम्बूल आदि कोई एक पदार्थ होना चाहिये । पृथक-पृथक कामना हेतु पृथक-पृथक पदार्थ है । यथा -लौंग, इलायची वशीकरण हेतु । सुपारी फल प्राप्ति व वशीकरण हेतु । गुडौदक – अन्नधनवृद्धि हेतु तथा सर्व सिद्धि हेतु ताम्बूल का प्रयोग करें । अगर साधक पर तामसी कृत्या प्रयोग किया हुआ है, तो उच्छिष्ट गणपति शत्रु की गन्दी क्रियाओं को नष्ट कर साधक की रक्षा करते हैं। ॥ अथ नवाक्षर उच्छिष्टगणपति मंत्रः ॥ मंत्र – हस्ति पिशाचि लिखे स्वाहा । विनियोगः – ॐ अस्य श्रीउच्छिष्ट गणपति मन्त्रस्य कंकोल ऋषिः, विराट् छन्दः, उच्छिष्टगणपति देवता, सर्वाभीष्ट सिद्ध्यर्थे जपे विनियोगः । ऋष्यादिन्यासः – ॐ अस्य श्री उच्छिष्ट गणपति मंत्रस्य कंकोल ऋषिः नमः शिरसि, विराट् छन्दसे नमः मुखे, उच्छिष्ट गणपति देवता नमः हृदये, सर्वाभीष्ट सिद्ध्यर्थे विनियोगाय नमः सर्वाङ्गे । करन्यास ॐ हस्ति अंगुष्ठाभ्यां नमः । ॐ पिशाचि तर्जनीभ्यां नमः । ॐ लिखे मध्यमाभ्यां नमः । ॐ स्वाहा अनामिकाभ्यां नमः । ॐ हस्ति पिशाचिलिखे कनिष्ठिकाभ्यां नमः । ॐ हस्ति पिशाचिलिखे स्वाहा करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः । हृदयादिन्यासः- ॐ हस्ति हृदयाय नमः । ॐ पिशाचि शिरसे स्वाहा । ॐ लिखे शिखायै वषट् । ॐ स्वाहा कवचाय हुम् । ॐ हस्ति पिशाचिलिखे नेत्रत्रयाय वौषट् । ॐ हस्ति पिशाचिलिखे स्वाहा अस्त्राय फट् स्वाहा । ॥ ध्यानम् ॥ चतुर्भुजं रक्ततनुं त्रिनेत्रं पाशाङ्कुशौ मोदकपात्रदन्तौ । करैर्दधानं सरसीरुहस्थमुन्मत्त गणेश मीडे । (क्वचिद् पाशाङ्कुशौ कल्पलतां स्वदन्तं करैवहन्तं कनकाद्रि कान्ति) ॥ अथ दशाक्षर उच्छिष्ट गणेश मंत्र ॥ मन्त्रः – १॰ गं हस्ति पिशाचि लिखे स्वाहा । २॰ ॐ हस्ति पिशाचि लिखे स्वाहा । ॥ अथ द्वादशाक्षर उच्छिष्ट गणेश मंत्र ॥ मन्त्रः – ॐ ह्रीं गं हस्ति पिशाचि लिखे स्वाहा । ॥ अथ एकोनविंशत्यक्षर उच्छिष्टगणेश मंत्र ॥ मन्त्रः- ॐ नमो उच्छिष्ट गणेशाय हस्ति पिशाचि लिखे स्वाहा । ॥ अथ त्रिंशदक्षर उच्छिष्टगणेश मंत्र ॥ मन्त्रः- ॐ नमो हस्तिमुखाय लंबोदराय उच्छिष्ट महात्मने क्रां क्रीं ह्रीं घे घे उच्छिष्टाय स्वाहा । विनियोगः- अस्योच्छिष्ट गणपति मंत्रस्य गणक ऋषिः, गायत्री छन्दः , उच्छिष्ट गणपतिर्देवता, ममाभीष्ट सिद्ध्यर्थे जपे विनियोगः । ॥ अथ एक-त्रिंशदक्षर उच्छिष्टगणेश मंत्र ॥ADD ameya jaywant narvekar

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  4. दशाक्षर क्षिप्रप्रसादगणपति (विघ्नराज) मंत्र August 30, 2019 | aspundir | Leave a comment ॥ अथ दशाक्षर क्षिप्रप्रसादगणपति (विघ्नराज) मंत्र ॥ मन्त्र – गं क्षिप्रप्रसादनाय नमः । क्षिप्र प्रसाद गणपति का पूजन श्रीविद्या ललिता सुन्दरी उपासना में मुख्य है । इनके बिना श्री विद्या अधूरी है। जो साधक श्री साधना करते हैं उन्हें सर्वप्रथम इनकी साधना कर इन्हें प्रसन्न करना चाहिए। कामदेव की भस्म से उत्पन्न दैत्य से श्री ललितादेवी के युद्ध के समय देवी एवं सेना के सम्मोहित होने पर इन्होंने ही उसका वध किया था। इनकी उपासना से विघ्न, आलस्य, कलह़, दुर्भाग्य दूर होकर ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है। विनियोगः- ॐ अस्य श्री क्षिप्र प्रसाद गणपति मंत्रस्य गणक ऋषिः । विराट् छन्दः, क्षिप्र प्रसादनाय देवता, गं बीजं, आं शक्तिं, सर्वाभीष्ट सिद्ध्यर्थे जपे विनियोगः । करन्यास अंग न्यास ॐ गं अंगुष्ठाभ्यां नमः । हृदयाय नमः । ॐ गं तर्जनीभ्यां नमः । शिरसे स्वाहा । ॐ गं मध्यमाभ्यां नमः । शिखायै वषट् । ॐ गं अनामिकाभ्यां नमः । कवचाय हुम् । ॐ गं कनिष्ठिकाभ्यां नमः । नैत्रत्रयाय वौषट् । ॐ गं करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः । अस्त्राय फट् । ध्यानम् पाशांकुशौ कल्पलतां विषाणं दधत् स्वशुण्डाहित बीजपूरः । रक्तस्त्रिनेत्रस्तरुणेन्दु मौलिर्हारोज्ज्वलो हस्तिमुखोऽवताद् वः ॥ रक्त वर्ण, पाश, अंकुश, कल्पलता हाथ ‍में लिए वरमुद्रा देते हुए, शुण्डाग्र में बीजापुर लिए हुए, तीन नेत्र वाले, उज्ज्वल हार इत्यादि आभूषणों से सज्जित, हस्ति मुख गणेश का मैं ध्यान करता हूं। यंत्रार्चनम् :- यंत्र देवता वक्रतुण्ड गणेश के ही है, प्रथमावरणम् – षट्कोण में हृदयशक्ति, शिरशक्ति, शिखाशक्ति, कवचशक्ति, नेत्रशक्ति एवं अस्त्रशक्ति का पूजन करें । द्वितीयावरणम् – अष्ट दलों में निम्न (क्षिप्रप्रसाद स्वरूपों का पूजन करे – ॐ विघ्नाय नमः ॥ १ ॥ ॐ विनायकाय नमः ॥ २ ॥ ॐ शूराय नमः ॥ ३ ॥ ॐ वीराय नमः ॥ ४ ॥ ॐ वरदाय नमः ॥ ५ ॥ ॐ इभक्त्राय नमः ॥ ६ ॥ ॐ एकरदाय नमः ॥ ७ ॥ ॐ लंबोदराय नमः ॥ ८ ॥ तृतीय व चतुर्थावरण में इसके बाद भूपूर में इन्द्रादि लोकपालों व आयुधों की पूर्व यंत्रार्चन विधि अनुसार करें । चार लाख जप कर, चालीस हजार आहुति मोदक से तथा नित्य चार सौ चवालीस (444) तर्पण करने से अपार धन-संपत्ति प्राप्त होती है । तर्पण में नारियल का जल या गुड़ोदक प्रयोग कर सकते हैं । त्रिकाल (सुबह-दोपहर-संध्या) को जप का विशेष महत्व है । अंगुष्ठ बराबर प्रतिमा बनाकर श्री क्षिप्रप्रसाद गणेश यं‍त्र के ऊपर स्थापित कर पूजन करें । श्री गणेश शीघ्र प्रसन्न होने वाले देवता हैं । ADD ameya jaywant narvekar

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  5. श्री विश्वावसु गन्धर्व-राज कवच स्तोत्रम् July 24, 2015 | aspundir | 2 Comments श्री विश्वावसु गन्धर्व-राज कवच स्तोत्रम् प्रणाम-मन्त्रः- ॐ श्रीगणेशाय नमः ।। ॐ श्रीगणेशाय नमः ।। ॐ श्रीगणेशाय नमः ।। ॐ श्रीसप्त-श्रृंग-निवासिन्यै नमः ।। ॐ श्रीसप्त-श्रृंग-निवासिन्यै नमः ।। ॐ श्रीसप्त-श्रृंग-निवासिन्यै नमः ।। ॐ श्रीविश्वावसु-गन्धर्व-राजाय कन्याभिः परिवारिताय नमः ।। ॐ श्रीविश्वावसु-गन्धर्व-राजाय कन्याभिः परिवारिताय नमः ।। ॐ श्रीविश्वावसु-गन्धर्व-राजाय कन्याभिः परिवारिताय नमः ।। ।। पूर्व-पीठिका ।। ॐ नमस्कृत्य महा-देवं, सर्वज्ञं परमेश्वरम् ।। ।। श्री पार्वत्युवाच ।। भगवन् देव-देवेश, शंकर परमेश्वर ! कथ्यतां मे परं स्तोत्रं, कवचं कामिनां प्रियम् ।। जप-मात्रेण यद्वश्यं, कामिनी-कुल-भृत्यवत् । कन्यादि-वश्यमाप्नोति, विवाहाभीष्ट-सिद्धिदम् ।। भग-दुःखैर्न बाध्येत, सर्वैश्वर्यमवाप्नुयात् ।। ।। श्रीईश्वरोवाच ।। अधुना श्रुणु देवशि ! कवचं सर्व-सिद्धिदं । विश्वावसुश्च गन्धर्वो, भक्तानां भग-भाग्यदः ।। कवचं तस्य परमं, कन्यार्थिणां विवाहदं । जपेद् वश्यं जगत् सर्वं, स्त्री-वश्यदं क्षणात् ।। भग-दुःखं न तं याति, भोगे रोग-भयं नहि । लिंगोत्कृष्ट-बल-प्राप्तिर्वीर्य-वृद्धि-करं परम् ।। महदैश्वर्यमवाप्नोति, भग-भाग्यादि-सम्पदाम् । नूतन-सुभगं भुक्तवा, विश्वावसु-प्रसादतः ।। विनियोगः- ॐ अस्यं श्री विश्वावसु-गन्धर्व-राज-कवच-स्तोत्र-मन्त्रस्य विश्व-सम्मोहन वाम-देव ऋषिः, अनुष्टुप् छन्दः, श्रीविश्वावसु-गन्धर्व-राज-देवता, ऐं क्लीं बीजं, क्लीं श्रीं शक्तिः, सौः हंसः ब्लूं ग्लौं कीलकं, श्रीविश्वावसु-गन्धर्व-राज-प्रसादात् भग-भाग्यादि-सिद्धि-पूर्वक-यथोक्त॒पल-प्राप्त्यर्थे जपे विनियोगः ।। ऋष्यादि-न्यासः- विश्व-सम्मोहन वाम-देव ऋषये नमः शिरसि, अनुष्टुप् छन्दसे नमः मुखे, श्रीविश्वावसु-गन्धर्व-राज-देवतायै नमः हृदि, ऐं क्लीं बीजाय नमः गुह्ये, क्लीं श्रीं शक्तये नमः पादयो, सौः हंसः ब्लूं ग्लौं कीलकाय नमः नाभौ, श्रीविश्वावसु-गन्धर्व-राज-प्रसादात् भग-भाग्यादि-सिद्धि-पूर्वक-यथोक्त॒पल-प्राप्त्यर्थे जपे विनियोगाय नमः सर्वांगे ।। षडङ्ग-न्यास – कर-न्यास – अंग-न्यास – ॐ क्लीं ऐं क्लीं अंगुष्ठाभ्यां नमः हृदयाय नमः ॐ क्लीं श्रीं गन्धर्व-राजाय क्लीं तर्जनीभ्यां नमः शिरसे स्वाहा ॐ क्लीं कन्या-दान-रतोद्यमाय क्लीं मध्यमाभ्यां नमः शिखायै वषट् ॐ क्लीं धृत-कह्लार-मालाय क्लीं अनामिकाभ्यां नमः कवचाय हुम् ॐ क्लीं भक्तानां भग-भाग्यादि-वर-प्रदानाय कनिष्ठिकाभ्यां नमः नेत्र-त्रयाय वौषट् ॐ क्लीं सौः हंसः ब्लूं ग्लौं क्लीं करतल-कर-पृष्ठाभ्यां नमः अस्त्राय फट् मन्त्रः- ॐ क्लीं विश्वावसु-गन्धर्व-राजाय नमः ॐ ऐं क्लीं सौः हंसः सोहं ऐं ह्रीं क्लीं श्रीं सौः ब्लूं ग्लौं क्लीं विश्वावसु-गन्धर्व-राजाय कन्याभिः परिवारिताय कन्या-दान-रतोद्यमाय धृत-कह्लार-मालाय भक्तानां भग-भाग्यादि-वर-प्रदानाय सालंकारां सु-रुपां दिव्य-कन्या-रत्नं मे देहि-देहि, मद्-विवाहाभीष्टं कुरु-कुरु, सर्व-स्त्री वशमानय, मे लिंगोत्कृष्ट-बलं प्रदापय, मत्स्तोकं विवर्धय-विवर्धय, भग-लिंग-रोगान् अपहर, मे भग-भाग्यादि-महदैश्वर्यं देहि-देहि, प्रसन्नो मे वरदो भव, ऐं क्लीं सौः हंसः सोहं ऐं ह्रीं क्लीं श्रीं सौं ब्लूं ग्लौं क्लीं नमः स्वाहा ।। (२०० अक्षर, १२ बार जपें) गायत्री मन्त्रः- ॐ क्लीं गन्धर्व-राजाय विद्महे कन्याभिः परिवारिताय धीमहि तन्नो विश्वावसु प्रचोदयात् क्लीं ।। (१० बार जपें) ध्यानः- क्लीं कन्याभिः परिवारितं, सु-विलसत् कह्लार-माला-धृतन्, स्तुष्टयाभरण-विभूषितं, सु-नयनं कन्या-प्रदानोद्यमम् । भक्तानन्द-करं सुरेश्वर-प्रियं मुथुनासने संस्थितम्, स्रातुं मे मदनारविन्द-सुमदं विश्वावसुं मे गुरुम् क्लीं ।। ध्यान के बाद, उक्त मन्त्र को १२ बार तथा गायत्री-मन्त्र को १० बार जपें । कवच मूल पाठ ।। कवच मूल पाठ ।। क्लीं कन्याभिः परिवारितं, सु-विलसत् माला-धृतन्- स्तुष्टयाभरण-विभूषितं, सु-नयनं कन्या-प्रदानोद्यमम् । भक्तानन्द-करं सुरेश्वर-प्रियं मिथुनासने संस्थितं, त्रातुं मे ameya jaywant narvekar

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  6. Category: यन्त्र-मन्त्र-तन्त्र जययुक्त श्रीदेवी – अष्टोत्तर-सहस्रनाम श्रीदुर्गा कवचम् श्रीदुर्गापदुद्धारस्तोत्रम् दुर्गास्तुतिः कामेश्वरीस्तुतिः दुर्गासहस्रनाम स्तोत्रम् / नामावली खंजनदर्शन तथा शुभाशुभ फलानि शमी पूजन प्रयोगः अश्व गज पूजन प्रयोगः नवदुर्गा प्रार्थना व ध्यान सिद्धिदात्री त्रैलोक्यमोहन गौरी प्रयोगः हरगौरी मंत्र महागौरी कालरात्रि श्रीराम कृत कात्यायनी स्तुति पाण्डवाः कृत कात्यायनी स्तुति कात्यायनी स्कन्द माता कूष्माण्डा चन्द्रघण्टा ब्रह्मचारिणी शैलपुत्री सहस्रनाम हिमालयराज कृत शैलपुत्री स्तुति शैलपुत्री दुर्गम संकटनाशन स्तोत्र ब्रह्माण्डमोहनाख्यं दुर्गाकवचम् ब्रह्माण्डविजय दुर्गा कवचम् वंशवृद्धिकरं दुर्गाकवचम् अथवा वंशकवचम् श्री चण्डिका मालामन्त्र प्रयोगः सिद्धिचण्डी महाविद्या सहस्राक्षर मन्त्र भगवती दुर्गा भगवती गौरी दुर्गाभुवनवर्णनम् ख्वाब में जुए-सट्टे का नम्बर जानने की विधि पीरों के पीर गौस ए आजम दुश्मन ज़बानबंदी / दुश्मन को बेअसर करना दो लोगों के बीच लड़ाई करवाकर अलग करने का टोटका पितृसूक्त वेदोक्त पितृसूक्त पुराणोक्त पितृस्तोत्र अभीष्ट फलदायक बाह्य शान्ति सूक्त गौरिकृतम् हेरम्बस्तोत्रं महागणपति मंत्रः गणेश शाबर मंत्र विरिगणपति दशाक्षर क्षिप्रप्रसादगणपति (विघ्नराज) मंत्र उच्छिष्ट गणपति प्रयोगः भगवान् श्रीगणेश के विभिन्न मन्त्र एकाक्षर गणपति कवचम् अथवा त्रैलोक्यमोहन कवचम् शत्रुसंहारकमेकदन्तस्तोत्रम् विघ्न-निवारकं सिद्धिविनायक स्तोत्रम् उच्छिष्ट गणेश स्तवराजः श्रीउच्छिष्ट गणपति सहस्रनाम स्तोत्रम् भगवान् श्रीकृष्ण की शरणागति और उनका आश्रय प्राप्त करने हेतु भगवान् श्रीकृष्ण से सर्वमनोकामना पूर्ति हेतु सरल अनुष्ठान श्रीराधाजी का आश्रय एवं लौकिक समृद्धि पाने हेतु सरल अनुष्ठान भगवान् श्रीकृष्ण के दर्शन के लिये सरल अनुष्ठान श्रीराधा-माधवप्रेमकी प्राप्तिके लिये लौकिक सरल अनुष्ठान श्रीराधास्तोत्रम् गोपालस्तोत्रं अथवा गोपालस्तवराजस्तोत्रम् श्रीकृष्ण सहस्रनाम स्तोत्र श्रीकृष्णस्तोत्रम् श्रीराधा त्रैलोक्यमोहन यन्त्रम् श्रीकृष्ण यंत्रावरण पूजनम् राधा यंत्रावरण पूजनम् श्रीराधा-माधव यन्त्र श्रीकृष्ण – दशाक्षर मन्त्र प्रयोगः श्रीकृष्ण – अष्टाक्षर मन्त्र चतुर्विंशति-मूर्तिस्तोत्र एवं द्वादशाक्षर स्तोत्र नागपत्नीकृत कृष्ण स्तुतिः गर्भगत कृष्णस्तुतिः श्रीकृष्ण कवचम् श्रीकृष्ण कवचम् – ब्रह्माणं प्रति योगनिद्रयोपदिष्टं मालावतीकृतं महापुरुष स्तोत्रम् श्रीकृष्णसहस्रनामम् – गर्गसंहितान्तर्गतं श्रीकृष्ण – एकाक्षरी मन्त्र त्रैलोक्यविजयं श्रीकृष्ण कवचम् कृष्णप्रेमामृतं स्तवं अथवा श्रीकृष्णाष्टोत्तरशतनामस्तोत्रम् पाशुपतास्त्र प्रयोगः अघोरास्त्र मन्त्र प्रयोगः ईशानादि पंचवक्त्र पूजा रक्षा बन्धन विधि शिव स्तुतिः चण्डेश्वर मंत्र: अर्द्धनारीश्वर मंजुघोष प्रयोगः वीरभद्र मंत्र प्रयोगः श्रीसुब्रह्मण्य (कार्तिकेय)- ameya jaywant narvekar

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  7. महा-मृत्युञ्जय-कवच श्रीमहा-मृत्युञ्जय-कवच ।।पूर्व-पीठिका-श्रीभैरव उवाच।। श्रृणुष्व परमेशानि ! कवचं मन्मुखोदितम् । महा-मृत्युञ्जयस्यास्य, न देवं परमाद्भुतम् ।।१ यं धृत्वा यं पठित्वा च, श्रुत्वा च कवचोत्तमम् । त्रैलोक्याधिपतिर्भूत्वा, सुखितोऽस्मि महेश्वरि ! ।।२ तदेव वर्णयिष्यामि, तव प्रीत्या वरानने । तथापि परमं तत्त्वं, न दातव्यं दुरात्मने ।।३… Read More श्रीमहादेव-प्रोक्तं-मृत-सञ्जीवनी-कवचम् श्रीमहादेव-प्रोक्तं-मृत-सञ्जीवनी-कवचम् विनियोगः- ॐ अस्य श्रीमृतसञ्जीवनीकवचस्य श्री महादेव ऋषिः, अनुष्टुप् छन्दः, श्रीमृत्युञ्जयरुद्रो देवता ॐ बीजं, जूं शक्तिः, सः कीलकम् मम (अमुकस्य) रक्षार्थं कवचपाठे विनियोगः। ऋष्यादि-न्यासः- श्री महादेव ऋषये नमः शिरसि, अनुष्टुप् छन्दसे नमः मुखे, श्रीमृत्युञ्जयरुद्रो देवतायै नमः हृदि, ॐ बीजाय नमः गुह्ये, जूं शक्तये नमः पादयो, सः कीलकाय नमः नाभौ, मम (अमुकस्य) रक्षार्थं कवचपाठे विनियोगाय नमः… Read More महामृत्युञ्जयस्तोत्रम् महामृत्युञ्जयस्तोत्रम् विनियोग- ॐ अस्य श्री महा-मृत्युञ्जय-स्तोत्र-मन्त्रस्य श्रीमार्कण्डेय ऋषिः, अनुष्टुप छन्दः, श्रीमृत्युञ्जयो देवता, गौरी शक्तिः, मम सर्वारिष्ट-समस्त-मृत्यु-अपमृत्यु-शान्त्यर्थं च जपे विनियोगः। ऋष्यादि-न्यास- श्रीमार्कण्डेय ऋषये नमः शिरसि। अनुष्टुप् छन्दसे नमः मुखे। श्रीमृत्युञ्जयो देवतायै नमः हृदि। गौरी शक्तये नमः नाभौ। मम सर्वारिष्ट-समस्त-मृत्यु-अपमृत्यु-शान्त्यर्थं च जपे विनियोगाय नमः सर्वांगे। ध्यान- चन्द्रार्काग्नि-विलोचनं स्मित-मुखं पद्म-द्वयान्तः-स्थितम्। मुद्रा-पाश-मृगाक्ष-सूत्र-विलसत्पाणिं हिमांशु-प्रभम् | कोटीन्दु-प्रगलत्सुधाऽऽप्लुत-तनुं हारादि-भूषोज्ज्वलं कान्तं विश्व-विमोहनं पशुपतिं… Read More ameya jaywant narvekar श्री प्रत्यंगिरा स्तोत्र श्री प्रत्यंगिरा स्तोत्र श्री गणेशाय नमः। ॐ नमः प्रत्यंगिरायै।। मन्दरस्थं सुखासीनं, भगवन्तं महेश्वरम्। समुपागम्य चरणौ, पार्वती परिपृच्छति।।१ ।।श्रीदेव्युवाच।। धारणी परमा विद्या, प्रत्यंगिरा महोदया। नर-नारी-हितार्थाय, बालानां रक्षणाय च।।२ राज्ञां मण्डलिकानां च, दीनानां च महेश्वर! महा-भयेषु घोरेषु, विद्युदग्नि-भयेषु च।।३ व्याघ्र-दंष्ट्रि-करी-घाते, नदी-नद-समुद्रके। अभिचारेषु सर्वेषु, युद्धे राज-भयेषु च।।४ सौभाग्य-जननी देव! नृणाम् वश्य-करी सदा। तां विद्यां भो सुरेशेह! कथयस्व मम… Read More विपरीत-प्रत्यंगिरा महा-विद्या zस्तोत्र विपरीत-प्रत्यंगिरा महा-विद्या स्तोत्र बहुत से व्यक्ति प्रेत, यक्ष, राक्षस, दानव, दैत्य, मरी-मसान, शंकिनी, डंकिनी बाधाओं तथा दूसरे के द्वारा या अपने द्वारा किए गए प्रयोगों के फल-स्वरुप पीड़ित रहते हैं। इन सबकी शान्ति हेतु यहाँ भैरव-तन्त्रोक्त ‘विपरीत-प्रत्यंगिरा’ की विधि प्रस्तुत है। पीड़ित व्यक्ति या प्रयोग-कर्ता गेरुवा लंगोट पहन कर एक कच्चा बिल्व-फल अपने तथा एक… Read More निरोग-कारी आदित्य-हृदय निरोग-कारी आदित्य-हृदय ‘आदित्य-हृदय’ का प्रयोग करने की विधि यह है की प्रातः-काल नींद खुलते ही शैय्या पर बैठे-बैठे ही भगवान् सूर्य के बारह नामों का पाठ करे। यथा- आदित्यः प्रथमं नाम, द्वितीयं तु दिवाकरः। तृतीयं भास्करः प्रोक्तं, चतुर्थं च प्रभा-करः।। पञ्चममं च सहस्रांशुः, षष्ठं चैव त्रि-लोचनः। सप्तमं हरिदश्वं च, अष्टमं तु अहर्पतिः।। नवमं दिन-करः प्रोक्तं… Read More संजीवनी-स्तवः संजीवनी-स्तवः अथापरमहं वक्ष्येऽमृत-सञ्जीवनी-स्तवम्, यस्याऽनुष्ठान-मात्रेण मृत्युर्दूरात् पलायते।।१ असाध्याः कष्ट-साध्याश्च महा-रोग-भयंकरा, शीघ्रं नश्यंति पठनात् स्यात् आयुश्च प्रवर्धते।।२ शाकिनी डाकिनी दोषाः कुदृष्टिः ग्रह-शत्रुजा, प्रेत-वेताल-यक्षोत्था बाधा नश्यंति चाखिलाः।।३ दुरितानि समस्तानि नाना-जन्मोद्भवानि च, संसर्गज विकाराणि विलीयन्तेऽस्य पाठतः।।४… Read More गंगा दशहरा स्तोत्र गंगा दशहरा स्तोत्र ॐ नमः शिवायै गंगायै, शिवदायै नमो नमः। नमस्ते विष्णु-रुपिण्यै, ब्रह्म-मूर्त्यै नमोऽस्तु ते।। नमस्ते रुद्र-रुपिण्यै, शांकर्यै ते नमो नमः। सर्व-देव-स्वरुपिण्यै, नमो भेषज-मूर्त्तये।। सर्वस्य सर्व-व्याधीनां, भिषक्-श्रेष्ठ्यै नमोऽस्तु ते। स्थास्नु-जंगम-सम्भूत-विष-हन्त्र्यै नमोऽस्तु ते।।… Read More

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  8. शनि मृत्युंजय स्तोत्र महाकाल शनि मृत्युंजय स्तोत्र विनियोगः- ॐ अस्य श्री महाकाल शनि मृत्युञ्जय स्तोत्र मन्त्रस्य पिप्लाद ऋषिरनुष्टुप्छन्दो महाकाल शनिर्देवता शं बीजं मायसी शक्तिः काल पुरुषायेति कीलकं मम अकाल अपमृत्यु निवारणार्थे पाठे विनियोगः। श्री गणेशाय नमः। ॐ महाकाल शनि मृत्युञ्जायाय नमः। नीलाद्रीशोभाञ्चितदिव्यमूर्तिः खड्गो त्रिदण्डी शरचापहस्तः । शम्भुर्महाकालशनिः पुरारिर्जयत्यशेषासुरनाशकारी ।।१ मेरुपृष्ठे समासीनं सामरस्ये स्थितं शिवम् । प्रणम्य शिरसा गौरी… Read More संसार-मोहक नाम श्रीगणेश-कवचम् संसार-मोहक नाम श्रीगणेश-कवचम् ।।पूर्व-पीठिकाः श्री नारायण उवाच।। विनायकस्य कवचं, सर्वापद्-विनिवारकम्। कथयामि महालक्ष्मी ! सर्व-लोकेषु शान्ति-कृत्।।१ कवचं विभ्रतां मृत्युर्न भिया याति सन्निधिम्। नाऽऽयुर्व्ययो नाशुभं च, ब्रह्माण्डे न पराजयः।।२… Read More विश्वविजय सरस्वती कवच विश्वविजय सरस्वती कवच श्रीब्रह्मवैवर्त-पुराण के प्रकृतिखण्ड, अध्याय ४ में मुनिवर भगवान् नारायण ने मुनिवर नारदजी को बतलाया कि ‘विप्रेन्द्र ! सरस्वती का कवच विश्व पर विजय प्राप्त कराने वाला है। जगत्स्त्रष्टा ब्रह्मा ने गन्धमादन पर्वत पर भृगु के आग्रह से इसे इन्हें बताया था।’ ॥ ध्यान ॥ सरस्वतीं शुक्लवर्णां सस्मितां सुमनोहराम् । कोटिचन्द्रप्रभाजुष्टपुष्टश्रीयुक्तविग्रहाम् ॥ वह्निशुद्धांशुकाधानां… Read More ameya jaywant narvekar सरस्वती महा-स्तोत्र सरस्वती महा-स्तोत्र प्रस्तुत ‘सरस्वती महा-स्तोत्र’ का एक वर्ष तक पाठ करने से मूर्ख व्यक्ति की भी मूर्खता दूर हो जाती है । नित्य-पाठ करने से पाठ-कर्त्ता मेधावी हो जाता है । यह महर्षि याज्ञवल्क्य का अनुभूत प्रयोग है । ॥ याज्ञवल्क्य कृत सकल-कामना-दायक सरस्वती स्तोत्रम् ॥ ॥ याज्ञवल्क्य उवाच ॥ कृपां कुरु जगन्मातर्मामेवं हततेजसम् ।… Read More शनैश्चरं प्रति विष्णुनोपदिष्टं गणेशकवचम् ॥ शनैश्चरं प्रति विष्णुनोपदिष्टं संसार-मोहन-गणेश-कवचम् ॥ विनियोगः- ॐ अस्य श्री गणेश कवच मंत्रस्य, प्रजापतिः ऋषिः, वृहती छन्दः , श्रीगजमुख विनायको देवता, गं बीजं, गीं शक्तिः, गः कीलकम्, धर्मकामार्थमोक्षेषु, श्री गणपति प्रीत्यर्थे जपे विनियोगः । ॥ विष्णुरुवाच ॥ संसारमोहनस्यास्य कवचस्य प्रजापतिः । ऋषिश्छन्दश्च बृहती देवो लम्बोदरः स्वयम् ॥ १ ॥ धर्मार्थकाममोक्षेषु विनियोगः प्रकीर्तितः । सर्वेषां कवचानां… Read More सर्व-यंत्र-मन्त्र-तंत्रोत्कीलन-स्तोत्र सर्व-यंत्र-मन्त्र-तंत्रोत्कीलन-स्तोत्र ।। पार्वत्युवाच ।। देवेश परमानन्द, भक्तानाम भयं प्रद ! आगमाः निगमाश्चैव, बीजं बीजोदयस्तथा ।।१।। समुदायेन बीजानां, मन्त्रो मंत्रस्य संहिता । ऋषिच्छन्दादिकं भेदो, वैदिकं यामलादिकम् ।।२।।

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  9. श्री वाराही कवचम् श्री वाराही कवचम् विनियोगः- ॐ अस्य श्रीवाराही-कवच-मन्त्रस्य श्रीत्रिलोचन-ऋषिः, अनुष्टुप्-छन्दः, श्रीआदि-वाराही-देवता, ग्लैं वीजं, स्वाहा शक्तिः, ऐं कीलकं, अभीष्ट-सिद्धयर्थे जपे विनियोगः । ऋष्यादि-न्यासः- श्रीत्रिलोचन-ऋषये नमः शिरसि, अनुष्टुप्-छन्दसे नमः मुखे, श्रीआदि-वाराही-देवतायै नमः हृदि, ग्लैं वीजाय नमः गुह्ये, स्वाहा शक्तये नमः नाभौ, ऐं कीलकाय नमः पादयो, अभीष्ट-सिद्धयर्थे जपे विनियोगाय नमः सर्वाङ्गे ।… Read More श्री वाराही मन्त्र प्रयोग श्री वाराही मन्त्र प्रयोग विनियोगः- ॐ अस्य श्रीवाराही मन्त्रस्य ब्रह्मा ऋषिः, अनुष्टुप् छन्दः, सकल-वशीकरणार्थे जपे विनियोगः । ऋष्यादि-न्यासः- ब्रह्मा ऋषये नमः शिरसि, अनुष्टुप् छन्दसे नमः मुखे, सकल-वशीकरणार्थे जपे विनियोगाय नमः सर्वांगे ।… Read More सर्प-भय-नाशक मनसा-स्तोत्र सर्प-भय-नाशक मनसा-स्तोत्र ध्यानः- चारु-चम्पक-वर्णाभां, सर्वांग-सु-मनोहराम् । नागेन्द्र-वाहिनीं देवीं, सर्व-विद्या-विशारदाम् ।। ।। मूल-स्तोत्र ।। ।। श्रीनारायण उवाच ।।… Read More सर्प-भय-विनाशक नागिनी द्वादश नाम स्तोत्र सर्प-भय-विनाशक नागिनी द्वादश नाम स्तोत्र जरत्कारुर्जगद्-गौरी, मनसा सिद्ध-योगिनी । वैष्णवी नाग-भगिनी, शैवी नागेश्वरी तथा ।। जरत्कारु-प्रियाऽऽस्तोक-माता विष-हरेति च । महा-ज्ञान-युता चैव, सा देवी विश्व-पूजिता ।। द्वादशैतानि नामानि, पूजा-काले तु यः पठेत् । तस्य नाग-भयं नास्ति, सर्वत्र विजयी भवेत् ।।… Read More नव-दुर्गा-स्तुति नव-दुर्गा-स्तुति अमर-पति-मुकुट-चुम्बित-चरणाम्बुज-सकल-भुवन-सुख-जननी। जयति जगदीश-वन्दिता सकलामल-निष्कला दुर्गा।।१ विकृत-नख-दशन-भूषण-रुधिर-वसाच्क्षुरित-खड्ग-कृत-हस्ता। जयति नर-मुण्ड-मण्डित-पिशित-सुरासव-रता चण्डी।।२… Read More श्रीपर-देवी-सूक्तम् श्रीपर-देवी-सूक्तम् विनियोगः- ॐ अस्य श्रीपर-देवी-सूक्त-माला-मन्त्रस्य मार्कण्डेय-मेधा-ऋषी । गायत्र्यादि-नाना-विधानि छन्दांसि । त्रि-शक्ति-रुपिणी चण्डिका देवता । ऐं वीजं । ह्रीं शक्तिः । क्लीं कीलकं । मम-चिन्तित-सकल-मनोरथ-सिद्धयर्थे जपे विनियोगः । ऋष्यादि-न्यासः- मार्कण्डेय-मेधा-ऋषिभ्यां नमः शिरसि । गायत्र्यादि-नाना-विधानि छन्दोभ्यो नमः मुखे । त्रि-शक्ति-रुपिणी चण्डिका देवतायै नमः हृदि । ऐं वीजाय नमः गुह्ये । ह्रीं शक्तये नमः पादयोः । क्लीं कीलकाय… Read More ameya jaywant narvekar श्रीदुर्गा-कर्पूर-स्तवम् श्रीदुर्गा-कर्पूर-स्तवम् ‘ऐं’ जपन्ति तव देवि ! ये मनुं भक्ति-नम्र-मनुजा विचक्षणाः। गद्य-पद्य-प्रभवः सुविलाशो भासते हि वचसा खलु तेषाम्।।१ ‘ह्रीं-ह्रीमि’त्येव मन्त्रं जपति यदि जनो भक्ति-नम्रो नितान्तम्, तद्-गेहे नैव लक्ष्मीस्त्यजति गिरि-सुते ! ते प्रसादात् कदापि। दासो-भूताश्च सर्वे भगवति ! मनुजाऽधीश्वरास्तस्य को वा, वक्तुं भूयात् समर्थः तव शिव-दयिते ! ह्रीं-मनोर्वै प्रभावम्।।२… Read More भगवती मंगल-चण्डिका भगवती मंगल-चण्डिका ‘चण्डी’ शब्द का प्रयोग ‘दक्षा’ (चतुरा) के अर्थ में होता है और ‘मंगल’ शब्द कल्याण का वाचक है। जो मंगल-कल्याण करने में दक्ष हो, वही “मंगल-चण्डिका” कही जाती है। ‘दुर्गा’ के अर्थ में भी चण्डी शब्द का प्रयोग होता है और मंगल शब्द भूमि-पुत्र मंगल के अर्थ में भी आता है। अतः जो… Read More श्रीदुर्गा-स्तवन श्री अर्जुन-कृत ‘श्रीदुर्गा-स्तवन’ ।। संजय उवाच ।। धार्तराष्ट्र-बलं दृष्ट्वा, युद्धाय समुपस्थितम । अर्जुनस्य हितार्थाय, कृष्णो वचनमब्रवीत् ।। 1 ।। ।। श्रीभगवानुवाच ।। शुचिर्भूत्वा महा-बाहि, संग्रामाभिमुखे स्थितः । पराजयाय शत्रूणां, दुर्गा-स्तोत्रमुदीरय ।। 2 ।।… Read More श्री दुर्गा कवचम् (रुद्रयामलोक्त) श्री दुर्गा कवचम् (रुद्रयामलोक्त) ।।श्री भैरव उवाच।। अधुना देवि वक्ष्येऽहं कवचं मन्त्रगर्भकम् । दुर्गायाः सारसर्वस्वं कवचेश्वरसञ्ज्ञकम् ।।१ परमार्थप्रदं नित्यं महापातकनाशनम् । योगिप्रियं योगीगम्यं देवानामपि दुर्लभम् ।।२ विना दानेन मन्त्रस्य सिद्धिर्देवि कलौ भवेत् । धारणादस्य देवेशि शिवस्त्रैलोक्यनायकः ।।३… Read More ADD ameya jaywant narvekar

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  10. भैरव शाबर मन्त्र भैरव शाबर मन्त्र मन्त्रः- “ॐ नमो भैंरुनाथ, काली का पुत्र ! हाजिर होके, तुम मेरा कारज करो तुरत । कमर विराज मस्तंगा लँगोट, घूँघर-माल । हाथ बिराज डमरु खप्पर त्रिशूल । मस्तक बिराज तिलक सिन्दूर । शीश बिराज जटा-जूट, गल बिराज नोद जनेऊ । ॐ नमो भैंरुनाथ, काली का पुत्र ! हाजिर होके तुम मेरा… Read More सर्व-कार्य-सिद्धि-प्रद शाबर भैरव मन्त्र सर्व-कार्य-सिद्धि-प्रद शाबर भैरव मन्त्र श्री काल-भैरव बटुक प्रयोग ॐ अस्य श्री वटुक-भैरव-स्तोत्रस्य सप्त-ऋषिः ऋषयः, मातृका छन्दः, श्रीवटुक-भैरो देवता, ममेप्सित-सिद्धयर्थ जपे विनियोगः । “ॐ काल-भैरौ, वटुक भैरौ, भूत-भैरौ ! महा-भैरव महा-भय-विनाशनं देवता-सर्व-सिद्धिर्भवेत् । शोक-दुःख-क्षय-करं निरञ्जनं, निराकारं नारायणं, भक्ति-पूर्ण त्वं महेशं । सर्व-काम-सिद्धिर्भवेत् । काल-भैरव, भूषण-वाहनं काल-हन्ता रुपं च, भैरव गुनी । महात्मनः योगिनां महा-देव-स्वरुपं । सर्व… Read More हनुमत् ‘साबर’ मन्त्र प्रयोग हनुमत् ‘साबर’ मन्त्र प्रयोग ।। श्री पार्वत्युवाच ।। हनुमच्छावरं मन्त्रं, नित्य-नाथोदितं तथा । वद मे करुणा-सिन्धो ! सर्व-कर्म-फल-प्रदम् ।। ।। श्रीईश्वर उवाच ।। आञ्जनेयाख्यं मन्त्रं च, ह्यादि-नाथोदितं तथा । सर्व-प्रयोग-सिद्धिं च, तथाप्यत्यन्त-पावनम् ।। ।। मन्त्र ।। “ॐ ह्रीं यं ह्रीं राम-दूताय, रिपु-पुरी-दाहनाय अक्ष-कुक्षि-विदारणाय, अपरिमित-बल-पराक्रमाय, ameya jaywant narvekar रावण-गिरि-वज्रायुधाय ह्रीं स्वाहा ।।” विधिः- ‘आञ्जनेय’ नामक उक्त मन्त्र का प्रयोग… Read More गो-मय गणपति उपासना गो-मय गणपति उपासना ‘गो-मय गणपति उपासना’– २१ दिनों की अति-प्रभावी उपासना है। यह उपासना किसी भी मास की शुक्ल चतुर्थी या शुभ दिन से प्रारम्भ की जा सकती है। संकल्पः- ॐ तत्सत् अद्यैतस्य ब्रह्मणोऽह्यि द्वितीय-प्रहरार्द्धे श्वेत-वराह-कल्पे जम्बू-द्वीपे भरत-खण्डे आर्यावर्त्त-देशे अमुक पुण्य-क्षेत्रे कलि-युगे कलि-प्रथम-चरणे ‘अमुक’-नाम संवत्सरे भाद्रपद-मासे

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  11. श्री विश्वावसु गन्धर्व-राज कवच स्तोत्रम् श्री विश्वावसु गन्धर्व-राज कवच स्तोत्रम् प्रणाम-मन्त्रः- ॐ श्रीगणेशाय नमः ।। ॐ श्रीगणेशाय नमः ।। ॐ श्रीगणेशाय नमः ।। ॐ श्रीसप्त-श्रृंग-निवासिन्यै नमः ।। ॐ श्रीसप्त-श्रृंग-निवासिन्यै नमः ।। ॐ श्रीसप्त-श्रृंग-निवासिन्यै नमः ।। ॐ श्रीविश्वावसु-गन्धर्व-राजाय कन्याभिः परिवारिताय नमः ।। ॐ श्रीविश्वावसु-गन्धर्व-राजाय कन्याभिः परिवारिताय नमः ।। ॐ श्रीविश्वावसु-गन्धर्व-राजाय कन्याभिः परिवारिताय नमः ।। ।। पूर्व-पीठिका ।। ॐ नमस्कृत्य महा-देवं, सर्वज्ञं… Read More गन्धर्व-राज विश्वावसु गन्धर्व-राज विश्वावसु गन्धर्व-राज विश्वावसु की पूजा पद्धति गन्धर्व-राज विश्वावसु की उपासना मुख्यतः ‘वशीकरण’ और ‘विवाह’ के लिये की जाती है। स्त्री-वशीकरण और विवाह के लिये इनके प्रयोग अमोघ है। मन्त्र- “ॐ विश्वावसु-गन्धर्व-राज-कन्या-सहस्त्रमावृत, ममाभिलाषितां अमुकीं कन्यां प्रयच्छ स्वाहा।” विनियोग- ॐ अस्य श्रीविश्वावसु-गन्धर्व-राज-मन्त्रस्य श्रीरुद्र-ऋषिः, अनुष्टुप छन्दः, श्रीविश्वावसु-गन्धर्व-राजः देवता, ह्रीं बीजं, स्वाहा शक्तिः, विश्वावसु-गन्धर्व-राज प्रीति-पूर्वक ममाभिलाषितां अमुकीं कन्यां… Read More श्रीबटुक-भैरव-साधना श्रीबटुक-भैरव-साधना विनियोगः- ॐ अस्य श्रीबटुक-भैरव-त्रिंशदक्षर-मन्त्रस्य श्रीकालाग्नि-रुद्र ऋषिः, अनुष्टुप् छन्दः, श्रीआपदुद्धारक देव बटुकेश्वर देवता, ‘ह्रीं’ बीजं, भैरवी-वल्लभ शक्तिः, दण्ड-पाणि कीलकं, मम समस्त-शत्रु-दमने, समस्तापन्निवारणे, सर्वाभीष्ट-प्रदाने वा जपे विनियोगः । ऋष्यादि-न्यासः- श्रीकालाग्नि-रुद्र ऋषये नमः शिरसि, अनुष्टुप् छन्दसे नमः मुखे, श्रीआपदुद्धारक देव बटुकेश्वर देवतायै नमः हृदि, ‘ह्रीं’ बीजाय नमः गुह्ये, भैरवी-वल्लभ शक्तये नमः नाभौ, दण्ड-पाणि कीलकाय नमः पादयो, मम… Read More आपदुद्धारक श्रीबटुक-भैरव-अष्टोत्तर-शत-नामावली के प्रयोग आपदुद्धारक श्रीबटुक-भैरव-अष्टोत्तर-शत-नामावली के प्रयोग “भैरव-तन्त्र” के ameya jaywant narvekar अनुसार आपदुद्धारक श्रीबटुक-भैरव-अष्टोत्तर-शत-नामावली के कुछ प्रयोग इस प्रकार हैं – १॰ रात्रि में तीन मास तक प्रति-दिन ३८ पाठ करने से (कुल ११४० पाठ) विद्या और धन की प्राप्ति होती है। २॰ तीन मास तक रात्रि में नौ अथवा बारह पाठ प्रति-दिन करने से ‘इष्ट-सिद्धि’ प्राप्त होती है ।… Read More श्रीबटुक-अपराध-क्षमापन-स्तोत्र श्रीबटुक-अपराध-क्षमापन-स्तोत्र ॐ गुरोः सेवां त्यक्त्वा गुरुवचन-शक्तोपि न भवे भवत्पूजा-ध्यानाज्जप 1 हवन-यागा 2 द्विरहितः । त्वदर्च-निर्माणे क्वचिदपि न यत्नं व कृतवान् जगज्जाल-ग्रसतो झटिति कुरु हार्दं मयि विभो ।।१ प्रभो ! दुर्गासूनो ! तव शरणतां सोऽधिगतवान् कृपालो ! दुःखार्तः कमपि भवदन्यं प्रकथये । सुहृत् 3 ! सम्पत्तेऽहं सरल 4-विरलः 5 साधकजन स्त्वदन्यः 6 कस्त्राता भव-दहन-दाहं शमयति ।।२… Read More गो-मय गणपति उपासना गो-मय गणपति उपासना ‘गो-मय गणपति उपासना’– २१ दिनों की अति-प्रभावी उपासना है। यह उपासना किसी भी मास की शुक्ल चतुर्थी या शुभ दिन से प्रारम्भ की जा सकती है। संकल्पः- ॐ तत्सत् अद्यैतस्य ब्रह्मणोऽह्यि द्वितीय-प्रहरार्द्धे श्वेत-वराह-कल्पे जम्बू-द्वीपे भरत-खण्डे आर्यावर्त्त-देशे अमुक पुण्य-क्षेत्रे कलि-युगे कलि-प्रथम-चरणे ‘अमुक’-नाम संवत्सरे भाद्रपद-मासे शुक्ल-पक्षे ADD

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  12. कवच मूल पाठ ।। कवच मूल पाठ ।। क्लीं कन्याभिः परिवारितं, सु-विलसत् माला-धृतन्- स्तुष्टयाभरण-विभूषितं, सु-नयनं कन्या-प्रदानोद्यमम् । भक्तानन्द-करं सुरेश्वर-प्रियं मिथुनासने संस्थितं, त्रातुं मे मदनारविन्द-सुमदं विश्वावसुं मे गुरुम् क्लीं ।। १ क्लीं विश्वावसु शिरः पातु, ललाटे कन्यकाऽधिपः । नेत्रौ मे खेचरो रक्षेद्, मुखे विद्या-धरं न्यसेत् क्लीं ।। २ क्लीं नासिकां मे सुगन्धांगो, कपोलौ कामिनी-प्रियः । हनुं हंसाननः पातु, कटौ सिंह-कटि-प्रियः क्लीं ।। ३ क्लीं स्कन्धौ महा-बलो रक्षेद्, बाहू मे पद्मिनी-प्रियः । करौ कामाग्रजो रक्षेत्, कराग्रे कुच-मर्दनः क्लीं ।। ४ क्लीं हृदि कामेश्वरो रक्षेत्, स्तनौ सर्व-स्त्री-काम-जित् । कुक्षौ द्वौ रक्षेद् गन्धर्व, ओष्ठाग्रे मघवार्चितः क्लीं ।। ५ क्लीं अमृताहार-सन्तुष्टो, उदरं मे नुदं न्यसेत् । नाभिं मे सततं पातु, रम्भाद्यप्सरसः प्रियः क्लीं ।। ६ क्लीं कटिं काम-प्रियो रक्षेद्, गुदं मे गन्धर्व-नायकः । लिंग-मूले महा-लिंगी, लिंगाग्रे भग-भाग्य-वान् क्लीं ।।७ क्लीं रेतः रेताचलः पातु, लिंगोत्कृष्ट-बल-प्रदः । दीर्घ-लिंगी च मे लिंगं, भोग-काले विवर्धय क्लीं ।। ८ क्लीं लिंग-मध्ये च मे पातु, स्थूल-लिंगी च वीर्यवान् । सदोत्तिष्ठञ्च मे लिंगो, भग-लिंगार्चन-प्रियः क्लीं ।। ९ क्लीं वृषणं सततं पातु, भगास्ये वृषण-स्थितः । वृषणे मे बलं रक्षेद्, बाला-जंघाधः स्थितः क्लीं ।। १० क्लीं जंघ-मध्ये च मे पातु, रम्भादि-जघन-स्थितः । जानू मे रक्ष कन्दर्पो, कन्याभिः परिवारितः क्लीं ।। ११ क्लीं जानू-मध्ये च मे रक्षेन्नारी-जानु-शिरः-स्थितः । पादौ मे शिविकारुढ़ः, कन्यकादि-प्रपूजितः क्लीं ।। १२ क्लीं आपाद-मस्तकं पातु, धृत-कह्लार-मालिका । भार्यां मे सततं पातु, सर्व-स्त्रीणां सु-भोगदः क्लीं ।। १३ क्लीं पुत्रान् कामेश्वरो पातु, कन्याः मे कन्यकाऽधिपः ameya jaywant narvekar । धनं गेहं च धान्यं च, दास-दासी-कुलं तथा क्लीं ।। १४ क्लीं विद्याऽऽयुः सबलं रक्षेद्, गन्धर्वाणां शिरोमणिः । यशः कीर्तिञ्च कान्तिञ्च, गजाश्वादि-पशून् तथा क्लीं ।। १५ क्लीं क्षेमारोग्यं च मानं च, पथिषु च बालालये । वाते मेघे तडित्-पतिः, रक्षेच्चित्रांगदाग्रजः क्लीं ।। १६ क्लीं पञ्च-प्राणादि-देहं च, मनादि-सकलेन्द्रियान् । धर्म-कामार्थ-मोक्षं च, रक्षां देहि सुरेश्वर ! क्लीं ।। १७ क्लीम रक्ष मे जगतस्सर्वं, द्वीपादि-नव-खण्डकम् । दश-दिक्षु च मे रक्षेद्, विश्वावसुः जगतः प्रभुः क्लीं ।। १८ क्लीं साकंकारां सु-रुपां च, कन्या-रत्नं च देहि मे । विवाहं च प्रद क्षिप्रं, भग-भाग्यादि-सिद्धिदः क्लीं ।। १९ क्लीं रम्भादि-कामिनी-वारस्त्रियो जाति-कुलांगनाः । वश्यं देहि त्वं मे सिद्धिं, गन्धर्वाणां गुरुत्तमः क्लीं ।। २० क्लीं भग-भाग्यादि-सिद्धिं मे, देहि सर्व-सुखोत्सवः । धर्म-कामार्थ-मोक्षं च, ददेहि विश्वावसु प्रभो ! क्लीं ।। २१ फल-श्रुति ।। फल-श्रुति ।। इत्येतत् कवचं दिव्यं, साक्षाद् वज्रोपमं परम् । भक्तया पठति यो नित्यं, तस्य कश्चिद्भयं नहि ।। २२ एक-विंशति-श्लोकांश्च, काम-राज-पुटं जपेत् । वश्यं तस्य जगत् सर्वं, सर्व-स्त्री-भुवन-त्रयम् ।। २३ सालंकारां सु-रुपां च, कन्यां दिव्यां लभेन्नरः । विवाहं च भवेत् तस्य, दुःख-दारिद्रयं तं नहि ।। २४ पुत्र-पौत्रादि-युक्तञ्च, स गण्यः श्रीमतां भवेत् । भार्या-प्रीतिर्विवर्धन्ति, वर्धनं सर्व-सम्पदाम् ।। २५ गजाश्वादि-धनं-धान्यं, शिबिकां च बलं तथा । महाऽऽनन्दमवाप्नोति, कवचस्य पाठाद् ध्रुवम् ।। २६ देशं पुरं च दुर्गं च, भूषादि-छत्र-चामरम् । यशः कीर्तिञ्च कान्तिञ्च, लभेद् गन्धर्व-सेवनात् ।। २७ राज-मान्यादि-सम्मानं, बुद्धि-विद्या-

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  13. श्री विश्वावसु गन्धर्व-राज कवच स्तोत्रम् July 24, 2015 | aspundir | 2 Comments श्री विश्वावसु गन्धर्व-राज कवच स्तोत्रम् प्रणाम-मन्त्रः- ॐ श्रीगणेशाय नमः ।। ॐ श्रीगणेशाय नमः ।। ॐ श्रीगणेशाय नमः ।। ॐ श्रीसप्त-श्रृंग-निवासिन्यै नमः ।। ॐ श्रीसप्त-श्रृंग-निवासिन्यै नमः ।। ॐ श्रीसप्त-श्रृंग-निवासिन्यै नमः ।। ॐ श्रीविश्वावसु-गन्धर्व-राजाय कन्याभिः परिवारिताय नमः ।। ॐ श्रीविश्वावसु-गन्धर्व-राजाय कन्याभिः परिवारिताय नमः ।। ॐ श्रीविश्वावसु-गन्धर्व-राजाय कन्याभिः परिवारिताय नमः ।। ।। पूर्व-पीठिका ।। ॐ नमस्कृत्य महा-देवं, सर्वज्ञं परमेश्वरम् ।। ।। श्री पार्वत्युवाच ।। भगवन् देव-देवेश, शंकर परमेश्वर ! कथ्यतां मे परं स्तोत्रं, कवचं कामिनां प्रियम् ।। जप-मात्रेण यद्वश्यं, कामिनी-कुल-भृत्यवत् । कन्यादि-वश्यमाप्नोति, विवाहाभीष्ट-सिद्धिदम् ।। भग-दुःखैर्न बाध्येत, सर्वैश्वर्यमवाप्नुयात् ।। ।। श्रीईश्वरोवाच ।। अधुना श्रुणु देवशि ! कवचं सर्व-सिद्धिदं । विश्वावसुश्च गन्धर्वो, भक्तानां भग-भाग्यदः ।। कवचं तस्य परमं, कन्यार्थिणां विवाहदं । जपेद् वश्यं जगत् सर्वं, स्त्री-वश्यदं क्षणात् ।। भग-दुःखं न तं याति, भोगे रोग-भयं नहि । लिंगोत्कृष्ट-बल-प्राप्तिर्वीर्य-वृद्धि-करं परम् ।। महदैश्वर्यमवाप्नोति, भग-भाग्यादि-सम्पदाम् । नूतन-सुभगं भुक्तवा, विश्वावसु-प्रसादतः ।। विनियोगः- ॐ अस्यं श्री विश्वावसु-गन्धर्व-राज-कवच-स्तोत्र-मन्त्रस्य विश्व-सम्मोहन वाम-देव ऋषिः, अनुष्टुप् छन्दः, श्रीविश्वावसु-गन्धर्व-राज-देवता, ऐं क्लीं बीजं, क्लीं श्रीं शक्तिः, सौः हंसः ब्लूं ग्लौं कीलकं, श्रीविश्वावसु-गन्धर्व-राज-प्रसादात् भग-भाग्यादि-सिद्धि-पूर्वक-यथोक्त॒पल-प्राप्त्यर्थे जपे विनियोगः ।। ऋष्यादि-न्यासः- विश्व-सम्मोहन वाम-देव ऋषये नमः शिरसि, अनुष्टुप् छन्दसे नमः मुखे, श्रीविश्वावसु-गन्धर्व-राज-देवतायै नमः हृदि, ऐं क्लीं बीजाय नमः गुह्ये, क्लीं श्रीं शक्तये नमः पादयो, सौः हंसः ब्लूं ग्लौं कीलकाय नमः नाभौ, श्रीविश्वावसु-गन्धर्व-राज-प्रसादात् भग-भाग्यादि-सिद्धि-पूर्वक-यथोक्त॒पल-प्राप्त्यर्थे जपे विनियोगाय नमः सर्वांगे ।। षडङ्ग-न्यास – कर-न्यास – अंग-न्यास – ॐ क्लीं ऐं क्लीं अंगुष्ठाभ्यां नमः हृदयाय नमः ॐ क्लीं श्रीं गन्धर्व-राजाय क्लीं तर्जनीभ्यां नमः शिरसे स्वाहा ॐ क्लीं कन्या-दान-रतोद्यमाय क्लीं मध्यमाभ्यां नमः शिखायै वषट् ॐ क्लीं धृत-कह्लार-मालाय क्लीं अनामिकाभ्यां नमः कवचाय हुम् ॐ क्लीं भक्तानां भग-भाग्यादि-वर-प्रदानाय कनिष्ठिकाभ्यां नमः नेत्र-त्रयाय वौषट् ॐ क्लीं सौः हंसः ब्लूं ग्लौं क्लीं करतल-कर-पृष्ठाभ्यां नमः अस्त्राय फट् मन्त्रः- ॐ क्लीं विश्वावसु-गन्धर्व-राजाय नमः ॐ ऐं क्लीं सौः हंसः सोहं ऐं ह्रीं क्लीं श्रीं सौः ब्लूं ग्लौं क्लीं विश्वावसु-गन्धर्व-राजाय कन्याभिः परिवारिताय कन्या-दान-रतोद्यमाय धृत-कह्लार-मालाय भक्तानां भग-भाग्यादि-वर-प्रदानाय सालंकारां सु-रुपां दिव्य-कन्या-रत्नं मे देहि-देहि, मद्-विवाहाभीष्टं कुरु-कुरु, सर्व-स्त्री वशमानय, मे लिंगोत्कृष्ट-बलं प्रदापय, मत्स्तोकं विवर्धय-विवर्धय, भग-लिंग-रोगान् अपहर, मे भग-भाग्यादि-महदैश्वर्यं देहि-देहि, प्रसन्नो मे वरदो भव, ऐं क्लीं सौः हंसः सोहं ऐं ह्रीं क्लीं श्रीं सौं ब्लूं ग्लौं क्लीं नमः स्वाहा ।। (२०० अक्षर, १२ बार जपें) गायत्री मन्त्रः- ॐ क्लीं गन्धर्व-राजाय विद्महे कन्याभिः परिवारिताय धीमहि तन्नो विश्वावसु प्रचोदयात् क्लीं ।। (१० बार जपें) ध्यानः- क्लीं कन्याभिः परिवारितं, सु-विलसत् कह्लार-माला-धृतन्, स्तुष्टयाभरण-विभूषितं, सु-नयनं कन्या-प्रदानोद्यमम् । भक्तानन्द-करं सुरेश्वर-प्रियं मुथुनासने संस्थितम्, स्रातुं मे मदनारविन्द-सुमदं विश्वावसुं मे गुरुम् क्लीं ।। ध्यान के बाद, उक्त मन्त्र को १२ बार तथा गायत्री-मन्त्र को १० बार जपें । कवच मूल पाठ ।। कवच मूल पाठ ।। क्लीं कन्याभिः परिवारितं, सु-विलसत् माला-धृतन्- स्तुष्टयाभरण-विभूषितं, सु-नयनं कन्या-प्रदानोद्यमम् । भक्तानन्द-करं सुरेश्वर-प्रियं मिथुनासने संस्थितं, त्रातुं मे ameya jaywant narvekar

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